मनुर्भव | "निरंकार पर विश्वास" | संत निरंकारी मिशन
*🌷🌹"मनुर्भव"🌹🌷*
नकारात्मक एवं सकारात्मक मन की यह दो अवस्थाएं ऐसी हैं जो परिस्थिति के अनुसार बदलती ही रहती हैं, *एक ही पल में मन नकारात्मक प्रभाव से आसुरिक प्रवृत्ति को अपनाकर हरिण्यकश्यप, रावण, कंस या दुर्योधन बन जाता है वहीं दूसरी ओर, अगले ही पल में सकारात्मक सोच के प्रभाव में द्वितीय प्रवृत्ति अपनाकर राम, कृष्ण, हनुमान या प्रह्लाद बन जाता है। सोच के परिवर्तन में संगत, संस्कार, व्यवहार एवं आचरण विशेष भूमिका निभाते हैं,* व्यसनी, भ्रष्टाचारी, कलुषित, शराबी, नशेड़ी, जुआरी, चोर-लुटेरों एवं ओछी मानसिकता वाले व्यक्तियों की संगत हमेशा ही नकारात्मकता की तरफ ढकेल देती है और इंसान वैसा ही होता चला जाता है। जबकि संत, महात्मा या महापुरुषों का साथ सकारात्मकता की ओर अग्रसर करता है और व्यक्ति सन्त, गुरसिख या भक्त बन जाता है।
*"जहाँ सुमति तहां सम्पत्ति नाना।
जहाँ कुमति तहां विपत्ति निधाना।।"*.
विभिन्न परिस्थितियों में अवस्था परिवर्तन भी संभव है, अतः एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति नकारात्मक हो सकता है जबकि एक नकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सकारात्मक। इसीलिए कहा भी जाता है कि *"अजे तो नाव समुद्र में, न जाने क्या होय"*। अतः पूर्ण सत्गुरू की चरण-शरण में रहकर पूर्णतः समर्पित होकर ही लक्ष्य हासिल हो सकता है, यह न सोचे कि पूर्ण सत्गुरू द्वारा तत्वज्ञान होना ही कल्याण कर देगा, नहीं... इसके उपरांत नियमित सेवा, सिमरन एवं सत्संग से गुरमत में श्रंगार करना ही गुरसिख का ध्येय होता है, तत्वज्ञान के बाद पूर्ण रूप से गुरमत में व्यवहारिक हो जाना ब्रह्मज्ञान का प्रकटाव है और तदंतर ब्रह्मज्ञान की बेहद समर्पित अवस्था आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करती है, यह भक्त के भक्ति की परम अवस्था है
*"अब तो जाइ चढ़े सिंहासन, मिलवो सारंग पानी।
राम-कबीरा इक भए, कोई न सके पहचानी।।"*
ऐसी निरंतरता ही लक्ष्य प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकती है, *"अबकी पासा न पड़ा, फिर चौरासी जाए।"* सम्पूर्ण अवतार वाणी में भी कहा गया है कि
*"मानुस जन्म है अंतिम सीढ़ी, फिसल गया ते बारी गई।
कह अवतार चौरासी वाली, करी कमाई सारी गई।।"*
आजकल इन्सानों की फ़ितरत ऐसी है कि इंसान को इंसान कहते हुए भी शर्म आती है, *"करतूत पशु की, मानुस जात"।* इसलिए संत-महात्मा रब्बी पुरूष अक्सर कहते हैं कि *"मनुर्भव"* और अपने अलौकिक प्रभाव से पशुता को मनुष्यता में परिवर्तित कर देते हैं
*"बड़े भाग मानुस तन पावा।
सुरि दुर्लभ सद ग्रंथहि गावा।।"*
"निरंकार पर विश्वास"
एक आदमी की नई-नई शादी हुई और वो अपनी पत्नी के साथ वापिस आ रहे थे।
रास्ते में वो दोनों एक बड़ी झील को नाव के द्वारा पार कर रहे थे, तभी अचानक एक भयंकर तूफान आ गया।
वो आदमी वीर था लेकिन औरत बहुत ड़री हुई थी क्योंकि हालात बिल्कुल खराब थे।
नाव बहुत छोटी थी और तूफान वास्तव में भयंकर था और दोनों किसी भी समय डूब सकते थे।
लेकिन वो आदमी चुपचाप, निश्चल और शान्त बैठा था जैसे कि कुछ नहीं होने वाला हो।
औरत डर के मारे कांप रही थी और बोली-
“क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा? ये हमारे जीवन का आखिरी क्षण हो सकता है। ऐसा नहीं लगता कि हम दूसरे किनारे पर कभी पहुँच भी पायेंगे। अब तो कोई चमत्कार ही हमें बचा सकता है वर्ना हमारी मौत निश्चित है। क्या तुम्हें बिल्कुल डर नहीं लग रहा ?"
वो आदमी खूब हँसा और एकाएक उसने म्यान से तलवार निकाल ली।
औरत अब और परेशान हो गई कि वो क्या कर रहा था ?
तब वो उस नंगी तलवार को उस औरत की गर्दन के पास ले आया।
इतना पास कि उसकी गर्दन और तलवार के बीच बिल्कुल कम फर्क बचा था क्योंकि तलवार लगभग उसकी गर्दन को छू रही थी।
वो अपनी पत्नी से बोला-
“क्या तुम्हें डर लग रहा है ?"
पत्नी खूब हँसी और बोली-
“जब तलवार तुम्हारे हाथ में है तो मुझे क्या डर ?
मैं जानती हूँ कि तुम मुझे बहुत प्यार करते हो।
उसने तलवार वापिस म्यान में डाल दी और बोला-
“यही मेरा जवाब है।
मैं जानता हूँ कि निरंकार मुझे बहुत प्यार करता है और ये तूफान उनके हाथ में हैं।
इसलिए जो भी होगा अच्छा ही होगा।
अगर हम बच गये तो भी अच्छा और अगर नहीं बचे तो भी अच्छा।
क्योंकि सब कुछ इस निरंकार के हाथ में है और वो कभी कुछ भी गलत नहीं कर सकता।
वो जो भी करेगा हमारे भले के लिए करेगा।"
इसलिए महापुरुषों,
हमेशा विश्वास बनाये रखो।
हमको हमेशा इस परमपिता परमात्मा निरंकार पर विश्वास रखना चाहिये।
जो हमारे पूरे जीवन को बदल सकता है।
*"मानुस जन्म अनमोल है, होत न बारम्बारि।
ज्यों फल पाके भुयि गिरै, पुनहि न लागहि डारि"*
शुकर है सत्गुरू माताजी का जो हमें अपनी चरण-शरण में इन्होंने पनाह दे दी है और स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है इकमिक एकरसता हासिल करने के लिए।
🌺शुकर ऐ मेरे रहबरां...🌺
🙏धन निरंकार जी🙏
Labels: Sant Nirankari Mission
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